Jivan ki Sikh...
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एक बुजुर्ग इंसान समुंदर के किनारे पे थे. समुन्दर के बहाव में जो मछिया किनारे पे आजाती थी और पानी लौट के चले जाता... मगर मछिया वहीं रहे जाती और बिना पानी के फड़फड़ा रही थी...
वह बुज़ुर्ग एक एक मछि को उठा के फिर से जितनी भी उन में क्षमता थी वह दूर पानी मे डाल रहे थे.....ताकि वह मछि या मर ना जाय....
एक नवजवान वहाँसे निकला और हँसते हुवे कुछ मजाक के स्वर में बुज़ुर्ग से पूछा ये क्या कर रहे हो?..... वह तो फिर बहाव में किनारे पे आ जायेगी ।।
ईस पर बुज़ुर्ग ने बहोत सुंदर जवाब दिया.....
मैं उन्हें मरता नही देख सकता तो मेरी क्षमता के हिसाब से मेरा आत्मा मुजे जो हुक्म दे रही है वह कर रहा हु... बाकी भगवान को जिनको जिंदा रखना होगा वे जिन्दा रहेगी...जिनके नसीब में मृत्यु होगी वह मर जाएगी.... मैं मेरा कर्तव्य कर रहा हूँ....
कह ने का तात्पर्य यह है कि कर्म करना मनुष्य के हाथ मे है... फल भी कर्म के आधीन जरूर मिलेगा...चाहे आज...चाहे कल...या फिर यथार्थ समय आने पे ।।
कार्य या कर्म कभी फिजूल नही जाता. किये हुवे कर्म के आधार पे योग्य प्रतिफल जरूर मिलेगा...
हमारा कर्तव्य है माँ पिता परिवार मित्र समाज गाँव देश के लिए कुछ अपना योगदान अवश्य दे।।।
कर्म नो सिद्धान्त एक उत्तम पुस्तक है श्री हिराभाई ठक्कर द्वारा लिखी. गुजराती में और अन्य भाषा ओ में भी मिल सकती है। अवश्य पढ़ें।।।
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