एक छोटासे गाँव में दो मित्र रहते थे. एक बनिया था दूसरा ब्राह्मण.  बचपन से साथ मे खेल कूद के बड़े हो गए और व्यवसाय में लग गए । ब्राह्मण शिक्षक बना और बनिया उसके पिता की किराने की दुकान में बैठना चालू किया. समय बीतता गया दोनो की शादी हो गई. कभी कभार मिल लेते थे.

एक दिन सुबह की बात है. ब्राह्मण मित्र उसके मित्र के घर गया. दुकान पे जाने का समय था बनिया तैयार होके दुकान के लिए निकल ही रहा था पर मित्र को देख कर मुस्कुरा के खुद के बाजू में जुले पे बिठाया और उसने पत्नी को जल पान लाने के लिए कहा. सुख दुःख की बाते करने लगे.

बनिया मित्र चतुर था अचानक मित्र को आया देख कर जरूर कोई बात होगी ये समझ गया था. चाय पीने के बाद अपने मित्र को पूछा कोई और बात है तो बताओ. बनिये की पत्नी भी वही सामने बैठी थी.

ब्राह्मण मित्र ने आने की वजह बताई.... बेटी की शादी है और कुछ पैसे कम पड़ रहे है...शायद पांच सात हजार का इंतज़ाम हो जाय तो... यह सुनकर बनिये मित्र ने उसकी पत्नी को घर मे से दस हजार रुपये लाने को कहा...

दस हजार जेब मे रख कर ब्राह्मण मित्र के मुह पर सुखद भाव लेके निकल गया...उसके जाने के बाद बनिये मित्र रोने लगा यह देख के उसकी पत्नी ने कहा जब आप को पता है आपके मित्र की आमदनी कम है और पैसे लौटा नही सकता तो उसी वक्त मना कर देते अब रोने से क्या फायदा....यह सुनकर बनिये ने उसकी पत्नी से कहा..........
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मैं पैसे आयेंगे या नही यह सोच कर नही रोया मगर मेरे मित्र की जरूरत को मैं क्यों समझ नही पाया और मुझ से मांगने पड़े इस बात का मुझे दुःख है....

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