कुछ लोग परिवार और ज़िमनेदारी ओ को छोड़ के साधु बन गए।
पूरी दुनिया को ज्ञानी बन कर उपदेश देने का चालू किया.....

और लोग भी क्या गज़ब के... किसी ने सवाल तक नही किया... आप के परिवार के प्रति कोई ज़िम्मेदारी नही? जब वो जिमेदारी आप को पता ना चली पूरी कर नही पाए और वो ज़िम्मेदारी ओ से मुह छुपा कर जब भागे हो तो समाज को आप क्या शिक्षा दे पाओगे????....

और जब आप अपनी जिम्मेदारी नही निभा सकते तब आप को ज्ञान देने का भी अधीकार नही है क्योंकि आप मे वह क्षमता ही नही है।
       
       कुछ तो मुक्त विचार - परिवार के नियमो और कोई भी तरह की ज़िम्मेदारी से दूर रहो बस मस्त रहो मुक्त और मनस्वी जीवन जि लो.... यह सीखा ने वाले भी आये...

 पता नही जो स्वार्थ उन महात्मा ओ ने देखा वही स्वार्थ इन लोगों का भी होगा... तभी ही कोई पतन का रास्ता किसी के दिखाने पे इतनी आसानी से मान ले.

      क्या गजब का धंधा है।।।।।
   और क्या मूर्ख लोग है. हमारे संस्कार सभ्यता हमारे अपने आत्मा ने जो जीने के नियम हमे सिखाये है उस से विपरीत जीवन जीना थोड़े से स्वार्थ के लिए अपनी अंतरात्मा को मरते दम तक गिरवी रख देना...क्या यही हमारे संस्कार विचारधारा है?

पता नही इस तरह की मानसिकता वाले थोड़े से स्वार्थ के लिए समाज का बेड़ा क्यों गर्क करना चाहते जानते है।

          देश और समाज के पतन के लिए यही लोग गुनहगार और ज़िम्मेदार है।

राम कृष्ण परमहंस, संत तुकाराम महाराज, मंडन मिश्र जी ये सब बहोत ज्ञानी और इन जैसे बहोत ने संसार मे रहकर ज्ञान बांटा....

एक सन्यासी को भी जीवन का मुक्ति का मंत्र एक संसारी ने ही दिया था.....

     

Comments

  1. बहूत अच्छे विचार। लेकिन व्याकरण तथा शब्द संधि की अनेक गलतियां।
    कृपया गलतियां सुधारे हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है ।
    गलतियां अशोभनीय है।

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    1. जी. आप ने ध्यान से पढ़ा उसका मैं शुक्र गुज़ार हु. गलती ओ के लिए क्षमा. गलतियां सुधार ने की अवश्य कोशिश करूंगा.

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